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Green Revolution
Under its Conservation of Nature ActivitiesSamiti has, in view of the menacing problem of Global warming, been making efforts to protect the environment of our region. During the period 2007 to 2015 our students have planted about 500 saplings on the “World Environment Days”, of which 300 saplings of Jamun, Arjun, Banyan, Gular, Bougainvilla, Belpatri, Amla were brought here from Delhi and 200 saplings of Mango, Orange, Lemon etc were purchased from the “Pabo Block” of Uttarakhand government. To sustain this activity, this year (2015) the Samiti has set up a large nursery near the Vidyalaya, where new varieties of herbal, fruit-bearing and such other plants are being developed which could cater to the needs of medicinal herbs, fruit as also fodder for the animals. A number of these trees have since started bearing fruits within 2 years……………..
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हरित क्रांति
ग्लोबल वार्मिंग जैसी विकट समस्या को देखते हुए पर्यावरण के बचाव के लिए सर्वप्रथम हमने देवभूमि उत्तराखण्ड को अपनी कर्मभूमि बनाया है, जिसका मुख्य कारण है कि यह संस्थापकों की मातृभूमि होने के साथ-साथ एक पिछड़ा हुआ क्षेत्र भी है तथा यहां पर समाज के हित में करने के लिए बहुत कुछ है दूसरा मुख्य कारण है कि संसाधनों की कमी एंव स्थाई रोजगार के अभाव में उत्तराखण्ड की इस देव भूमि का ग्रामीण इलाका धीरे-धीरे खाली होता जा रहा है, आज सही समय पर जरूरत है इस पलायन को रोकने के लिए पहल करने की। क्षेत्र में वर्ष 2007 से हर वर्ष “विश्व पर्यावरण दिवस” के अवसर पर ओडली संस्कृत विद्यालय के विद्यार्थियों द्वारा इस क्षेत्र में बड़े पैमाने पर पौधों का वृक्षारोपण किया जा रहा है।
मुख्यतः सेब, आम, लिची, संतरे, अखरोट, कठहल, नींबू, आंवला एंव पुलम इत्यादी पौधों के अतिरिक्त पिपल, जामुन, अर्जुन, बरगद, गुलर, बागनवेलिया, बेलपत्री के साथ-साथ हरड़, बहड़, दालचिनी के पौधों को लगाने पर भी ध्यान केन्द्रित कर रहे हैं। इस कार्य को निरन्तर जारी रखने के लिए वर्ष 2014 तक पावौ ब्लाक (सरकार) के उधान विभाग से पौधों को खरीदा जा रहा था। हमारे प्रयास और लग्न को देखते हुए इस वर्ष (2015) में पावौ ब्लाक के उधान विभाग द्वारा ओडली गाँव को फलों की घाटी में परिवर्तित करने के लिए ओडली विद्यालय परिवार को 180 अति उत्तम नस्ल के आम, लिची, अनार व मौसमी के पौधे एंव जरुरी दवाईयां निशुःल्क दि गई जिनका रोपण विद्यालय के आस-पास एक बडे भुभाग में किया गया है।
फलदार वृक्षों को जैसे आम, लीची, पूलम, सतंरे के पौधों को लगाने का मुख्य कारण यह है की उत्तरप्रदेश व उत्तराखण्ड के मैदानी इलाके में जंहा अधिकतम आम की पैदावार होती थी बड़े पैमाने पर शहरीकरण होने के कारण फलों के बाग धिरे-धिरे खत्म होने के कगार पर है वंही इसके विपरीत उत्तराखण्ड की जलवायू इन फलों को उगाने की लिए बहुत ही उपयुक्त होने के साथ-साथ रोजगार के अभाव में पलायन के कारण धीरे-धीरे खाली होते हुए गाँव की बडे पैमाने पर बंजर होती जा रही भूमी को इस तरह से इस्तेमाल किया जाये की वो एक बहुत बड़े वाणिज्यिक हब में परिवर्ति हो जाए। इससे पलायन तो रूकेगा ही, अधिकतम मात्रा मे फलों की पैदावार होने से खाद्य प्रसंस्करण इकाइयाँ (food processing Units) लगेंगी जिससे रोजगार के अवसर पैदा होंगे। जरूरत है बस एक शुरूआत करने की हमारा विशवास है कि बागों को लगाने का यह प्रयास आज यह एक गाँव से शुरू होकर धिरे-धिरे पूरे क्षेत्र में फैल जाएगा यही बंजर होती हुई भूमि कल सोना उगलने लगेगी। इसका जिवंत उद्हारण हमारे द्वरा पिछले कुछ वर्षों में लगाऐ गये पौधों हैं जिनहोंने मात्र 2 वर्ष से भी कम समय में फल देना शुरू कर दिया है।
उत्तराखण्ड के जंगलों में बांज, जामुन, नीम, पिलखन, बड़, पिपल इत्यादी पेड़ों को लगाने का मुख्य उद्देश्य है कि एक तो ये पौधे अपना वंश स्वयं ही बड़ाते रहते हैं क्योंकी जंहा-जंहा भी इनके बीज गिरते हैं वंहीं अपने आप इनके पौधे जमते जाते हैं दूसरा इनको ज्यादा देखभाल की जरूरत नहीं होती तिसरा नदी के जल में बहकर भी ये बीज उत्तराखण्ड के बहुत बडे़ क्षेत्र में बिना किसी खर्चे के अपना वंश बड़ाते जायेंगे। यही कार्य अभी जंगलों में चीड़ के पेड़ कर रहे है हर वर्ष आग से होने वाले बहुत बड़े नुकसान का मुख्य कारण भी चिड़ ही हैं क्योंकि उसकी घास बहुत ही ज्वलनशील होती है और दूसरा ये अपना वंश बड़ी तेजी से बड़ाता है। आग लगने के कारण पौधों के जल जाने से पहाड़ों की जमीन धिरे-धिरे कमजोर होती जा रही है और पहाडों के धसकने का मुख्य कारण भी पहाड़ों पर पौधों का कम होते जाना है क्योंकि इन्हीं पेड़ों की जड़ें मिट्टी को जकड़े रहती है। इन पौधों को लगाने से जहां चीड़ की पैदावार पर अंकुश लगेगा और इनकी गहराई में गई जड़ों से पाहाड़ों को भी मजबूती मिलेगी और पहाड़ों का नुकसान भी कम होगा। बांज का पौधा उत्तराखण्ड में एक तरह से सागौन की लकड़ी (teak wood) हैं मजबूत होने के साथ-साथ कीमती भी है तथा इसका सबसे बड़ा फयादा यह है कि जंहा भी इसका पौधा होगा वंहा भूमि में बहुत ज्यादा नमी पैदा हो जाती है पानी के स्त्रोत पैदा करता हैं।
इसको लगाने का तरीका भी वही है इसकी निकवाल (बीज) जंहा भी भूमी में गिरेगी यह पैदा हो जायेगा इसकी भी देखभाल की जरूरत नहीं है केवल पशुओं से बचा के रखना पड़ता है। इस कार्य को निरन्तर आगे बड़ाने के लिए इस वर्ष 2015 में विद्यालय के समीप एक बहुत बड़ी नर्सरी की स्थापना की गई है जिसमें हर्बल, फलदार व ऐसै पेड़ पोधों की किस्मों को तैयार किया जाने का प्रयास चल रहा है जिनसे औषधीय, फलों के साथ-साथ जानवरों के चारे की भी व्यवस्था हो सके। जिसकी शुरूआत में हमने सर्वप्रथम जामुन, नीम व अशोक की लगभग 5000 पौध को तैयार करने से किया इन तैयार पौधों को हम वन विभाग एंव शिक्षा विभाग के सहयोग से क्षेत्र के सभी विदयालयों के विद्यार्थियों एंव जागरूक लोगों को निशुःलक वितरित करेंगे और उनको प्रोत्साहित करेंगे की वो सभी अपने घर से विद्यालय के रास्ते में कम से कम एक वृक्ष का रोपण जरूर करें और उसकी एक वर्ष तक देखभाल करें घर से विद्यालय आते समय एक बोतल में पानी लाकर उसमें डालें इससे उनमें उस वृक्ष के प्रति लगाव पैदा होगा एवं बगैर किसी लागत/खर्चे के बहुत बड़े भुभाग पर वृक्षारोपण कार्यक्रम निरन्तर चलाया जा सकेगा क्योंकि सब कुछ सरकार के भरोसे पर रहकर नहीं किया जा सकता, इस समाज का भी कुछ उत्तरदायित्व बनता है।
2015 वृक्षारोपण अभियान
हमारे प्रयास और लग्न को देखते हुए इस वर्ष (2015) में पावौ ब्लाक के उधान विभाग द्वारा ओडली गाँव को फलों की घाटी में परिवर्तित करने के लिए ओडली विद्यालय परिवार को 180 अति उत्तम नस्ल के आम, लिची, अनार व मौसमी के पौधे एंव जरुरी दवाईयां निशुःल्क दि गई जिनका रोपण विद्यालय के आस-पास एक बडे भुभाग में किया गया है। इसके अतिरिक्त इसी वर्ष हमने विद्यालय के समीप एक बहुत बड़ी नर्सरी की स्थापना की जिसकी शुरूआत जामुन, नीम व अशोक की लगभग 5000 पौध तैयार करने का कार्य किया जिसको वर्षा के दिनों में वन विभाग एंव शिक्षा विभाग के सहयोग से जंगलों में रोपित कर दिया जाएगा। जानवरों के चारे के लिए हाइब्रिड नेपियर घास लगाई गई है जिससे मवेशी दूध तो ज्यादा देंगे ही साथ-साथ अब तक जो घास के लिए पेड़ काटे जाते थे उनको भी नहीं काटा जाऐगा। इसके साथ-साथ बंजर भूमी में एलोविरा (Aloe vera) की बड़ती जरूरत को देखते हुए इसकी खेती करने का भी प्रयास कर रहे हैं। 15 अगस्त, 2015 को ओडली विद्यालय के विद्यार्थीयों द्वारा इस दिन को “वृक्ष संकल्प दिवस” के रुप में मनाने का निर्णय लिया है और उसको “मेरू डळो…….मेरू प्राण” (मेरा वृक्ष…..मेरा प्राण) का नाम दिया। इसके अतिरिक्त 50 पौधे किनु के भी लगाये गये हैं।
वृक्षारोपण अभियान का मुख्य उद्देश्य
क) कृषि के क्षेत्र में अत्यधिक पिछड़ापन
ख) जानवरों के लिए चिकित्सा सुविधाओं का अभाव
ग) जंगलों में पेड़-पौधों का अभाव इत्यादी ।
उत्तराखण्ड के जंगलों में चीड़़ के पेड़ों की भरमार होने के कारण उसकी सुखी घास से जगंलो में हर वर्ष गर्मीयों के मौसम में आग से बहुत नुकसान सहना पड़ता है। इस लिए ऐसे पौधों को लगाया जाये जिससे फल, दवाईयां व जानवरों को घास मिलने के साथ-साथ पर्यावरण एवं धसकते पहाडों को भी बहुत फायदा हो। इसके लिये आंवला, हरड़, बहड़, दालचिनी, बेलपत्री, नीम इत्यादि के पेड़ों को लगाने का प्रयास किया जा रहा है जिससे कई दवाईयों को बनाने में भी इनका उपयोग हो सकता है और हमारी बंजर होती हुई भूमि का सही उपयोग हो सकता है। कृषि के क्षेत्र में अत्याधिक पिछड़ेपन व परंपरागत कृषि से हटकर आधुनिक कृषि, बागवानी, जड़ी-बूटी, नकदी फसलों, फ्लोरीकल्चर जैसी व्यवसायिक खेती की पैदवार बढ़ाने के उपायों को शुरू करने के साथ-साथ डेयरी, पशुपालन, मच्छलीपालन, मुर्गीपालन जैसे छोटे उधोगों के लिए पहल करने के भी प्रयास किये जा रहे हैं जिससे गाँवो-गाँवो में आय के संसाधनों को पैदा किया जा सके और पहाड़ों से तेजी से हो रहे पलायन को रोका जा सके। जानवरों के चारे के लिए हाइब्रिड नेपियर घास को लगाया गया है जो महज 50 दिनों में विकसित होकर अगले 4 से 5 साल तक लगातार दुधारू पशुओं के लिए उत्तम पौष्टिक आहार की जरूरत को पूरा करेगी । दुधारू पशुओं को लगातार यह घास खिलाने से दूध उत्पादन में वृद्धि व रोग प्रतिरोधक क्षमता विकसित होने के साथ बांझपन की बीमारी भी नहीं होती है। इसको लगाने का फयदा यह होगा कि एक तो इसको ज्यादा देखभाल की जरूरत नहीं होती है दूसरा ये भरपूर मात्रा में पैदा होती है और चारे के लिए अब हमें पेड़ों को नहीं कटाना पडेगा तथा घास-चारे के लिए महिलाओं को दूर जंगल में नही जाना पडेगा क्योंकि इसको घर के नजदिक खेतों की मुंडेरों पर या बंजर जमीन में लगा दिया जाऐगा।